Bihar board hindi subject class 10

{ Free }Bihar board hindi subject class 10 : Chapter 3 – भारत से हम क्या सीखें ( भाषण )

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Bihar board hindi subject class 10 : बिहार बोर्ड कक्षा 10वीं हिंदी विषय के गद्य खण्ड पाठ 3: भारत से हम क्या सीखें (भाषण) उसके बारे में महत्पूर्ण बिंदु, महत्पूर्ण सवालों के जानेगें जो आपके प्रतियोगिता परीक्षा में कभी मदद करने वाली हैं |

गद्य खंड के पाठ “भारत से हम क्या सीखें” में भारत की समृद्ध संस्कृति, धार्मिक सहिष्णुता, योग, और आध्यात्मिकता पर प्रकाश डाला गया है। इसमें महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों, स्वदेशी आंदोलन, और शिक्षा के महत्व पर चर्चा की गई है। भाषण भारत की प्राचीन धरोहरों से सीख लेकर एक वैश्विक दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देता है।

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{ Free } Bihar board hindi subject class 10 : Chapter 3. -भारत से हम क्या सीखें ( भाषण )

Board NameBihar School Examination Board
Class10th
SubjectHindi ( गोधूलि भाग-2 )
Chapterभारत से हम क्या सीखें ( भाषण )
Writerमैक्समूलर
LanguageHindi
Exam2025
Last UpdateLast Weeks
Marks100

Chapter 3. -भारत से हम क्या सीखें ( भाषण )

गद्य खंड पाठ 3: “भारत से हम क्या सीखें” (भाषण) के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  1. भारतीय संस्कृति की महानता: यह भाषण भारत की समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और आध्यात्मिकता के महत्व को रेखांकित करता है। इसमें बताया गया है कि कैसे भारत ने दुनिया को सहिष्णुता, अहिंसा, और आध्यात्मिकता का मार्ग दिखाया है।
  2. धार्मिक सहिष्णुता: भाषण में भारतीय समाज की विशेषता के रूप में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के प्रति सहिष्णुता की चर्चा की गई है। यह बताया गया है कि भारत ने किस तरह से विविधताओं के बावजूद एकता बनाए रखी है।
  3. शांति और अहिंसा: महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों को मुख्य बिंदु के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा हैं।
  4. आध्यात्मिकता और योग: भारत के योग और ध्यान की प्रथाओं को वैश्विक स्तर पर स्वीकार किया गया है। भाषण में इस बात पर जोर दिया गया है कि ये प्रथाएं मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं।
  5. स्वदेशी और आत्मनिर्भरता: भारत की स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की भावना का वर्णन किया गया है, जिसे भारत ने अपने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपनाया और जो आज भी महत्वपूर्ण है।
  6. शिक्षा का महत्व: भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली और ज्ञान की परंपरा को भी रेखांकित किया गया है। इसमें गुरुकुल प्रणाली से लेकर आधुनिक शिक्षा की यात्रा को समझाया गया है।
  7. आर्थिक और सामाजिक सुधार: भाषण में भारत के सामाजिक और आर्थिक सुधारों पर भी चर्चा की गई है, जिसमें जाति व्यवस्था, छुआछूत, और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  8. वैश्विक दृष्टिकोण: भारत का वैश्विक दृष्टिकोण, जिसमें “वसुधैव कुटुंबकम” (पूरी दुनिया एक परिवार है) का विचार शामिल है, भी एक महत्वपूर्ण बिंदु है। यह दर्शाता है कि भारत ने हमेशा एक व्यापक और समग्र दृष्टिकोण अपनाया है।
  9. भविष्य के लिए सबक: भाषण में भारत की प्राचीन धरोहरों से सबक लेते हुए आधुनिक समय में उनसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने की बात कही गई है।

इन बिंदुओं के माध्यम से, भाषण में भारत की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक विरासत की महत्ता को समझाने का प्रयास किया गया है और यह संदेश दिया गया है कि दुनिया को भारत से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।

महत्पूर्ण सवालों के उत्तर

पाठ के साथ :

प्रश्न 1: समस्त भूमंडल में सर्वविद सम्पदा और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण देश भारत है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर: भारत एक ऐसा अद्वितीय देश है, जहाँ मानव मस्तिष्क की उत्कृष्टतम उपलब्धियों का सबसे पहले साक्षात्कार हुआ है। यहाँ जीवन की जटिलतम समस्याओं का समाधान ढूँढ निकाला गया है, जो विश्व के दार्शनिकों के लिए भी गहन चिंतन का विषय रहा है। भारतीय धरती पर प्रकृति की अनूठी छटा बिखरी हुई है, जो इसे स्वर्ग समान बना देती है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य, मानवीय गुण, मूल्यवान रत्न, और प्रचुर प्राकृतिक सम्पदा इसे अद्वितीय बनाते हैं।

इसके साथ ही, भारत महान मनीषियों के आध्यात्मिक चिंतन से समृद्ध है, जिसने यहाँ के जीवन को सुखद और संतुलित बनाने के लिए उपयुक्त ज्ञान और वातावरण प्रदान किया है। भारत की इस संपन्नता और सुंदरता का संपूर्ण भूमंडल में कोई अन्य स्थान नहीं है, जो इसे विशेष और अनमोल बनाता है।

प्रश्न 2: लेखक की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन कहाँ हो सकते हैं और क्यों?

उत्तर: लेखक की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन गाँवों में हो सकते हैं, क्योंकि गाँव ही भारतीय संस्कृति, परंपरा, और जीवन मूल्यों के वास्तविक केंद्र हैं। भारत की प्राचीन परंपराएँ, जिनमें ऋषियों का ज्ञान और कृषि पद्धतियाँ शामिल हैं, गाँवों में आज भी जीवंत रूप में विद्यमान हैं।

यहाँ की ग्राम पंचायत व्यवस्था, कृषि प्रणाली, और मंदिरों की सांस्कृतिक धरोहर, भारतीय समाज के मूलभूत तत्वों को प्रदर्शित करती है। गाँवों में ही हमें भारतीय समाज का वह सहज और सादा रूप देखने को मिलता है, जहाँ परंपराओं का सम्मान और सामुदायिक जीवन की सजीवता बनी हुई है। इसीलिए, सच्चे भारत का दर्शन, उसकी आत्मा और संस्कृति को समझने के लिए, गाँवों का अवलोकन करना आवश्यक है।

प्रश्न 3: भारत को पहचान सकने वाली दृष्टि की आवश्यकता किनके लिए वांछनीय है और क्यों?

उत्तर: भारत को पहचान सकने वाली दृष्टि विशेष रूप से उन युवा अंग्रेज अधिकारियों के लिए वांछनीय है, जिन्हें भारतीय सिविल सेवा के लिए चुना गया है। भारत जैसे विविध और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर वाले देश में कार्य करने के लिए, इन अधिकारियों को यहाँ की परंपराओं, सामाजिक व्यवस्थाओं, और ज्ञान विज्ञान की गहरी समझ होना आवश्यक है। लेखक का मानना है कि भारत की भूमि पर आने के बाद, इन अधिकारियों को यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर, ज्ञान, विज्ञान, और सामाजिक व्यवस्थाओं का सही ढंग से संग्रह और उन्नयन करना चाहिए।

इससे न केवल भारत के प्रति उनकी समझ बढ़ेगी, बल्कि वे उन ज्ञान और विद्याओं को इंग्लैंड भी ले जा सकेंगे, जो यहाँ के गंगा-सिंधु के मैदानों में सदियों से विकसित हुई हैं। इसलिए, भारत की पहचान करने वाली दृष्टि उनके लिए आवश्यक है ताकि वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय भारत के वास्तविक स्वरूप और उसकी गहराई को समझ सकें।

प्रश्न 4: लेखक ने किन विशेष क्षेत्रों में अभिरुचि रखने वाले के लिए भारत का प्रत्यक्ष ज्ञान आवश्यक बताया है?

उत्तर: लेखक ने यह कहा है कि यदि किसी की अभिरुचि विशेष क्षेत्रों में गहरी है, तो भारत का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य हो जाता है। चाहे वह लोकप्रिय शिक्षा से जुड़ा हो या उच्च शिक्षा से, संसद में प्रतिनिधित्व की बात हो या कानून बनाने का कार्य, प्रवास संबंधी कानून हो या अन्य कानूनी मामले—भारत इन सभी क्षेत्रों में एक अनूठी प्रयोगशाला के रूप में कार्य करता है।

भारत की विविधता, उसकी सामाजिक और कानूनी प्रणालियाँ, और शिक्षा का व्यापक दायरा ऐसे अवसर प्रदान करते हैं, जो दुनिया में अन्यत्र कहीं नहीं मिलते। इसलिए, इन विशेष क्षेत्रों में रुचि रखने वालों के लिए भारत का प्रत्यक्ष अनुभव और ज्ञान प्राप्त करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ उन्हें सीखने और सिखाने योग्य अद्वितीय अवसर मिलते हैं।

प्रश्न 5: लेखक ने वारेन हेस्टिंग्स से संबंधित किस दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का हवाला दिया है और क्यों?

उत्तर: लेखक ने वारेन हेस्टिंग्स से संबंधित एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना का उल्लेख किया है, जो उनके द्वारा वाराणसी के पास मिले 172 दारिस नामक सोने के सिक्कों से जुड़ी है। हेस्टिंग्स ने इन सिक्कों को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर मानते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक मंडल को एक महत्वपूर्ण उपहार के रूप में भेजा, यह सोचकर कि यह उनकी ओर से भेजी गई सबसे मूल्यवान और दुर्लभ वस्तु मानी जाएगी।

दुर्भाग्य से, कंपनी के निदेशक मंडल ने इन सिक्कों के ऐतिहासिक महत्व को नहीं समझा और उन्हें गलाने का आदेश दे दिया। हेस्टिंग्स के लिए यह घटना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण थी, क्योंकि उन्होंने यह अपेक्षा नहीं की थी कि ऐसी ऐतिहासिक धरोहर को नष्ट कर दिया जाएगा। इस घटना के बाद, हेस्टिंग्स ने यह निर्णय लिया कि आगे से ऐसी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक वस्तुओं को सुरक्षित रखने के प्रति अधिक सतर्कता बरती जाए, ताकि इस प्रकार की अनमोल धरोहरें नष्ट न हों।

प्रश्न 6: लेखक ने नीतिकथाओं के क्षेत्र में किस तरह भारतीय अवदान को रेखांकित किया है?

उत्तर: लेखक ने नीतिकथाओं के क्षेत्र में भारतीय योगदान को रेखांकित करते हुए बताया है कि इन कथाओं के अध्ययन से नवजीवन का संचार हुआ है। समय-समय पर अनेक नीतिकथाएँ विभिन्न साधनों और मार्गों से पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती रही हैं। विशेष रूप से, भारत में प्रचलित कहावतों और दंतकथाओं का प्रमुख स्रोत बौद्ध धर्म को माना गया है, लेकिन इनमें निहित कई समस्याएँ अब भी समाधान की प्रतीक्षा में हैं।

उदाहरण के लिए, “शेर की खाल में गदहा” वाली कहावत सबसे पहले यूनानी दार्शनिक प्लेटो के क्रटिलस में मिलती है। इसी तरह, संस्कृत की कुछ कथाएँ यूनानी नीतिकथाओं से मेल खाती हैं। लेखक इस बात को रेखांकित करते हैं कि भारतीय नीतिकथाएँ और यूनानी नीतिकथाएँ कैसे आपस में जुड़ी हैं, यह एक महत्वपूर्ण शोध का विषय है। इससे यह स्पष्ट होता है कि नीतिकथाओं के प्रसार में भारत का योगदान महत्वपूर्ण रहा है, और इनका वैश्विक प्रभाव गहन और व्यापक है।

प्रश्न 7: भारत के साथ यूरोप के व्यापारिक संबंध के प्राचीन प्रमाण लेखक ने क्या दिखाए हैं?

उत्तर: लेखक ने भारत और यूरोप के बीच प्राचीन व्यापारिक संबंधों के कई प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने बताया कि यह ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित हो चुका है कि सोलोमन के समय में ही भारत, सीरिया, और फिलिस्तीन के बीच आवागमन और व्यापारिक संबंध स्थापित हो चुके थे।

इन व्यापारिक संबंधों के अध्ययन में कुछ संस्कृत शब्दों का भी उल्लेख मिलता है, जो यह दर्शाते हैं कि उन समयों में भारत से हाथी-दाँत, बंदर, मोर, और चंदन जैसी वस्तुएँ निर्यात की जाती थीं। बाइबिल में भी इन वस्तुओं के निर्यात का उल्लेख मिलता है, और यह स्पष्ट किया गया है कि ये वस्तुएँ केवल भारत से ही प्राप्त की जा सकती थीं। इसके अलावा, ऐतिहासिक अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि दसवीं-ग्यारहवीं सदी में भी भारत के साथ यूरोप के व्यापारिक संबंध बने रहे, और यह व्यापारिक संबंध समय के साथ निरंतर जारी रहे। इन सभी तथ्यों से स्पष्ट होता है कि भारत का यूरोप के साथ प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध रहा है।

प्रश्न 8: भारत के ग्राम पंचायतों को किस अर्थ में और किनके लिए लेखक ने महत्त्वपूर्ण बतलाया है? स्पष्ट करें।

उत्तर: लेखक ने भारत के ग्राम पंचायतों को विशेष रूप से उन युवा अंग्रेज अधिकारियों के लिए महत्त्वपूर्ण बताया है, जो भारतीय सिविल सेवा के लिए चयनित हुए थे। उन्होंने कहा कि इन अधिकारियों को प्राचीन युग के कानून और शासन की पुरातन रूपों की समझ प्राप्त करने के लिए भारत की ग्राम पंचायतों का प्रत्यक्ष अवलोकन करना आवश्यक है।

ग्राम पंचायतें अत्यंत सरल राजनैतिक इकाइयाँ हैं जो प्राचीन कानून और शासन व्यवस्थाओं के विकास और निर्माण से संबंधित हैं। इन पंचायतों का अध्ययन करके अधिकारी प्राचीन प्रशासनिक ढांचे की विशिष्टता और महत्व को समझ सकते हैं। इस प्रकार, भारत की ग्राम पंचायतों के माध्यम से, ये अधिकारी पुरानी प्राचीन व्यवस्था के बारे में वास्तविक और गहरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जो उनकी प्रशासनिक दक्षता और समझ को बढ़ा सकती है।

प्रश्न 9: धर्मों की दृष्टि से भारत का क्या महत्त्व है?

उत्तर: भारत का धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि यह प्राचीन काल से धार्मिक विकास का केंद्र रहा है। यहाँ धर्म की वास्तविक उत्पत्ति, उसका प्राकृतिक विकास, और उसके विभिन्न रूपों का साक्षात्कार मिलता है। भारत वैदिक धर्म की जन्मभूमि है, बौद्ध धर्म की जननी है, और पारसियों के जरथुस्ट्र धर्म की शरणस्थली भी है।

यहाँ आज भी नित्य नए मत और पंथ उत्पन्न और विकसित होते रहते हैं। इस प्रकार, भारत धार्मिक क्षेत्र में विश्व को आलोकित करने वाला एक महत्वपूर्ण देश है, जो विभिन्न धार्मिक परंपराओं और विचारधाराओं का गहना है।

प्रश्न 10: भारत किस तरह अतीत और सुदूर भविष्य को जोड़ता है? स्पष्ट करें।

उत्तर: भारत अतीत और सुदूर भविष्य को एक अनूठे तरीके से जोड़ता है। यहाँ आप अपने-आपको हमेशा अत्यंत प्राचीन काल और भविष्य के बीच स्थित महसूस कर सकते हैं। भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक, और ऐतिहासिक धरोहर इतनी गहरी और व्यापक है कि यह अतीत की प्राचीनता को जीवित रखती है, साथ ही, यहाँ की निरंतरता और नवाचार इसे भविष्य के प्रति आशान्वित बनाते हैं।

प्राचीन मंदिरों, पुरानी परंपराओं, और इतिहास के साथ-साथ, भारत में आधुनिकता, तकनीकी प्रगति, और सामाजिक बदलाव भी हो रहे हैं। इस तरह, भारत अतीत की गहराई और भविष्य की संभावनाओं के बीच एक पुल का काम करता है, जो इसकी अनंतता और समृद्धि को दर्शाता है।

प्रश्न 11: मैक्समूलर ने संस्कृत की कौन-सी विशेषताएँ और महत्त्व बतलाए हैं?

उत्तर: मैक्समूलर ने संस्कृत की कई विशेषताओं और महत्त्व को उजागर किया है। उनकी दृष्टि में संस्कृत की सबसे प्रमुख विशेषता इसकी प्राचीनता है। संस्कृत ग्रीक भाषा से भी पुरानी मानी जाती है, और इसके अस्तित्व से ही भाषाओं के बीच एक स्पष्ट संबंध स्थापित होता है। संस्कृत ने इन भाषाओं की जड़ों को समझने में मदद की और भाषाई संबंधों को स्पष्ट किया। इसलिए, संस्कृत को अन्य भाषाओं की अग्रजा (प्रारंभिक भाषा) माना जाता है, जो भाषाई विकास और इतिहास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

प्रश्न 12: लेखक वास्तविक इतिहास किसे मानता है और क्यों?

उत्तर: लेखक के अनुसार, वास्तविक इतिहास वह होता है जिसे एक देश या राज्य की प्राचीनता को समझने के लिए भाषाई और सांस्कृतिक अध्ययन के माध्यम से जाना जाता है। यह जानने के लिए कि आर्य लोग विभाजन से पूर्व किस तरह की सभ्यता और सांस्कृतिक अवस्था में थे, हमें आर्य भाषाओं के शब्दकोष का अध्ययन करना पड़ता है।

संस्कृत, ग्रीक, और लैटिन भाषाओं के सामान्य उद्गम-स्रोत को खोजने के लिए हमें अतीत में बहुत पीछे जाना पड़ता है, जहां से ये शक्तिशाली जातियाँ एक-दूसरे से पृथक हुई थीं। इस प्रकार, अतीत की भाषा और संस्कृति के अध्ययन के माध्यम से हम एक सटीक और विस्तृत चित्र प्राप्त कर सकते हैं, जो कि राज्यों, दुराचारों, और जातियों की क्रूरताओं से कहीं अधिक पठनीय और ज्ञातव्य होता है। लेखक इसे वास्तविक इतिहास मानते हैं क्योंकि यह हमें सभ्यता की गहराई और विकास की सही जानकारी प्रदान करता है।

प्रश्न 13: संस्कृत और दूसरी भारतीय भाषाओं के अध्ययन से पश्चात्य जगत् को प्रमुख लाभ क्या-क्या हुए?

उत्तर: संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं के अध्ययन से पश्चात्य जगत् को कई प्रमुख लाभ हुए हैं। सबसे पहले, इन भाषाओं के अध्ययन ने मानव जाति के प्रति पश्चिमी दृष्टिकोण को व्यापक और उदार बना दिया है। इससे पहले अजनबी और बर्बर समझे जाने वाले लोगों को अब अपने ही परिवार के सदस्य की भांति स्वीकारने की भावना विकसित हुई है। इसके अतिरिक्त, इन भाषाओं ने मानव जाति के संपूर्ण इतिहास को एक वास्तविक और गहन रूप में प्रकट करने में सहायता की है, जिससे पहले जो जानकारी उपलब्ध नहीं थी, वह अब स्पष्ट हो सकी है। इस प्रकार, भारतीय भाषाओं ने पश्चिमी जगत को मानवता और सांस्कृतिक विकास के एक समृद्ध और विविध परिप्रेक्ष्य से अवगत कराया है।

प्रश्न 14: लेखक ने भारत के लिए नवागंतुक अधिकारियों को किसकी तरह सपने देखने के लिए प्रेरित किया है और क्यों?

उत्तर: लेखक ने भारत के लिए नवागंतुक अधिकारियों को सर विलियम जेम्स की तरह सपने देखने के लिए प्रेरित किया है। सर विलियम जेम्स ने इंग्लैंड से अपनी लम्बी समुद्र यात्रा की समाप्ति पर जब भारत के तट को देखा, तो उन्होंने एक सुखद और अद्वितीय अनुभव किया। उन्होंने महसूस किया कि एशिया की यह भूमि विभिन्न विज्ञानों की जननी, आनंददायक कथा-प्रेरणा, उपयोगी कलाओं की पालक, शानदार कार्यकलापों की दृश्यभूमि, मानव प्रतिभा की जननी, और धार्मिक विकास का केन्द्र है।

इस प्रकार, भारत की विविधता, सांस्कृतिक समृद्धि, और उसकी पवित्रता को देखकर सर विलियम जेम्स ने एक व्यापक और सम्मानजनक दृष्टिकोण अपनाया। नवागंतुक अधिकारियों को इस दृष्टिकोण से प्रेरित कर, लेखक ने उन्हें भारत के महत्व और उसकी विशेषताओं को समझने के लिए प्रेरित किया है।

प्रश्न 15: लेखक ने नया सिकंदर किसे कहा है? ऐसा कहना क्या उचित है? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: लेखक ने नया सिकंदर उन नवागंतुकों, अन्वेषकों, पर्यटकों, और अधिकारियों को कहा है जो भारत को समझने, जानने, और उसका सम्पूर्ण लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत आते हैं। सिकंदर ने प्राचीन काल में भारत विजय का स्वप्न देखा था, और इसी प्रकार आज के समय में भारतीयता को निकट से जानने के लिए जो लोग उत्सुक हैं, उन्हें भी नया सिकंदर कहा जा सकता है। यह कहना उचित है क्योंकि वे भारतीय संस्कृति, इतिहास, और ज्ञान के अद्भुत स्रोतों को अन्वेषण और अध्ययन के माध्यम से समझना चाहते हैं।

लेखक का अभिप्राय यह है कि नया सिकंदर को इस विचार से निराश नहीं होना चाहिए कि गंगा और सिंध के प्राचीन मैदानों में अब विजय के लिए कुछ भी शेष नहीं रहा। वास्तव में, भारत में अभी भी अध्ययन, शोध, और विभिन्न प्राचीन ज्ञान के क्षेत्रों में महान अवसर और उपलब्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं। लेखक ने यह संकेत किया है कि भारतीयता के सम्यक ज्ञान की आवश्यकता आज भी विश्व के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत में असीम संभावनाएँ हैं, और इन्हें पहचानना और समझना आज के नए सिकंदर के लिए एक महत्वपूर्ण और मूल्यवान कार्य है।

महत्पूर्ण लिंक

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